नन्ही – नन्ही कच्ची उम्र की बच्चियाँ

नन्ही – नन्ही कच्ची उम्र की बच्चियाँ

nanhee – nanhee kachchi umr ki bachchiyan

kachchi umr ki bachchiyan


यह वाकया काफी पुराना है, वर्षों पहले का। अखबार पढ़्ते हुए किसानों की समस्या, टिड्डी दल द्वारा अनाज खाने व सहारा के रेगिस्तान जैसे अकाल का ध्यान आया तो पुराना वाकया याद आ गया। इसका संबंध रोहिंग्या शरणार्थियों से है। बरमा, अब म्यांमार देश ने मुसलमान रोहिंग्यो को निकाल फेंका। उन्हें ज़्यादातर बांग्लादेश ने शरण दी। पर कुछ रोहिंग्या कोलकाता [कलकत्ता] तक आ गए। वहाँ से घिसटते फिसटते हुए वे उस जगह के पास पहुँच गए जहां मेरा रहना और सेक्सी मस्ती करना होता है। यह कोलकाता का बहुत पोश इलाका है। मुझे मेरे कारिंदों से खबर मिली कि उनकी हालत बहुत बुरी है। भारत सरकार उन्हें वापस खदेड़ना चाहती है। उन्हें रोटी व कपड़ों के लाले पड़े हुए हैं।

इसी प्रसंग में एक दिन एक बूढ़ी औरत मेरे पास आई। उसके साथ तीन मासूम बच्चियाँ थीं। कच्ची उम्र थी उनकी— यही कोई 5 साल, 7 साल, और 9 साल। बूढ़ी औरत बोली मुझसे, ” मैं इन्हें बेचना चाहती हूँ। मेरी बहूरानी बरमा देश मिलिटरी झगड़े में मर गई और हम शरणार्थी बन इधर आ गए। ये उसकी अभागी तीन बेटियाँ हैं, आपके संग रहेगी तो इनका दानापानी हो जाएगा, और इन्हें बेचने से जो पैसे मिलेंगे उससे मैं अपना बुढ़ापा निकाल लूँगी। आप धर्मात्मा हो; मुझ गरीब पर रहम करो ” । मैंने बच्चियों का एकटक मुआयना किया। वो मैलेकुचैले कपड़ों में थी व भूखों मर रही थी। मेरा ध्यान उस समय न तो उनके सेक्स पर गया और न ही बच्चियों के शरीर की गठान पर। सबसे पहले मैंने उन्हें फलों का रस पीने को दिया। फिर स्नान करवाया; फिर बूढ़ी सास को खाना खिलाया व बच्चियों को भी। फिर मैंने बुढ़िया को अच्छे पैसे दिए, उन्हें खरीद लिया। तीनों बच्चियाँ एकदम मरियल थीं। मैं उन्हे बाज़ार ले गया व उनके नाप के अच्छे कपड़े खरीद कर उन्हें पहना दिया। बच्चियाँ हारी थकीं थीं इसलिए उनके सोने का और आराम का इंतजाम किया।

मैंने अपनी नौकरानी को बुलाया। उसने इन बच्चियों के अंग टटोले और बोली: ” सर, ये आपके काम की नहीं। ” मुझे गुस्सा आ गया। मैंने कहा — तुम्हें इससे कोई मतलब नहीं। बच्चियाँ हैं, मासूम हैं। एकदम मरियल है। इनको माँ की याद आती होगी। यह बात सोच मैंने तत्काल एक 27 वर्ष की औरत को ढूंढा। वह बच्चेवाली थी अर्थात उसे बच्चा हुए छह महीने ही हुए थे पर मैंने उसे इन तीन बच्चियों की सेहत सुधारने व इन्हें अपनी माँ की याद न आए इसलिए इस 27 साल की औरत को रख लिया कि वो माँ की तरह इन बच्चियों की परवरिश करे। पैसा हाथ का मैल है।

नन्ही – नन्ही कच्ची बच्चियाँ


छह महीने बीत गए। बच्चियों ने अच्छा खाया पीय जिससे उनके अंग निखरने लगे। मैंने इस ओर देखा भी नहीं। अब मैंने उनकी पढ़ाई-लिखाई की तजबीज की। अच्छे पब्लिक स्कूल भेजा। एक से एक फेशन के कपड़े सिलवाए उनके लिए। उन्हें डांस सिखाने मास्टरनी रखी। एक दिन मैंने देखा कि वो 27 वर्ष वाली माँ इन्हें छोड़ गई और मुझे भी। अब तो मुझे ही इनका ध्यान रखना था। इसलिए मैं ध्यान रखने लगा। सुबह मैं इन्हें इनके अंग पकड़ कर व्यायाम कराता; दोपहर काल में रेस्तरां में इन्हें खाना खिलाता, शाम को होटल में खाना खिलाता, इन्हें सिनेमा दिखाता। बच्चियाँ खुश थीं। वे मुझे पापा, पापा कहने लग गईं थीं जबकि उम्र अनुसार मैं उनका दादा या नाना था।

रात को इन बच्चियों को मैं अपने संग ही सुलाता। एक बड़ी बच्ची मेरे पीछे चिपट सोती, दो मेरे आगे। अदल -बदल भी होता। दिन में मैं अक्सर इन्हें गोद में बैठाता।

अब यह कहने की बात नहीं कि मैं सेक्सी नेचर का हूँ। पर मैंने इन बच्चियों पर पाप की नजर नहीं डाली, कम से कम अभी तक। मेरी नौकरानी मधु 14 साल की है और उसने अपनी दो फ्रेंड और बुला डाली, एक तेरह वर्ष की व एक ग्यारह वर्ष की। इस उम्र की छोकरिया भी मेरे लिए हराम नहीं थी, सेक्स का मज़ा लेने के लिए और उनके साथ नंगी मस्ती करने वास्ते। इन 13 वर्ष व 11 वर्ष की दो छोरियों के नाम थे उषा और निशा। मैं इन दोनों की गांड का मज़ा चखना चाहता था। मेरा तरीका ये था कि मैं इन दोनों कों नंगी करने के बाद इनसे कहता कि दोनों एक दूसरे की चूत से लिपट-चिपट जाय। फिर मैं पहले उषा की और फिर निशा की गांड मारता, सलीके से। जब निशा की गांड मारता तब साथ-साथ उषा की गांड में अंगुल पेलता और जब उषा की मारता तब निशा की गांड में अंगुल धच धचकती। कुछ समय बाद मैंने दो मोटीताजी 40-42 वर्ष की दो औरतों का प्रबंध भी किया। एक मेरी गांड से सट कर आगे धक्का मारती और दूसरी उषा और निशा की गांड से बारी -बारी सट दोनों को धक्का लगा-लगा उत्तेजित करती। इससे गांड मारने का मज़ा बढ़ जाता।

मैं हर छोकरी के तीनों छेद खँगालता। कई बार कुछ ज्यादा मोटी ताज़ी छोकरी भी मँगवाता। एक बार एक मोटे-मोटे मम्मोंवाली स्कूल गर्ल मँगवाई। आह ,उसके मोटे मम्मों को रौंदने का भरपूर मज़ा मिला।

मेरा ये खेल ये रोहिंग्या शरणार्थी बच्चियाँ देखने लगीं थी भले ही छिप कर। वैसे भी सही बात कब तक छिपती।

जैसा कि मैंने पहले बताया रात को मैं इन तीनों शरणार्थी बच्चियों के साथ हमबिस्तर होता। एक रात बड़ी वाली छोकरी मेरे पीछे लग सोई थी और मँझली व छोटी मेरे आगे लग सटी हुई थी। नींद में मेरा एक हाथ छोटी वाली छोरी की चूतड़ पर सरक गया था। ये रात के लगभग एक बजे की बात है जब मैंने महसूस किया कि मँझली वाली छोरी के हाथ मेरे लंड पर और बड़ी वाली छोरी के हाथ मेरी गांड को टटोल रहे हैं। मैं चिहुँक उठा और जागने के साथ ही चिल्लाया: ” यह क्या बदतमीजी है, हटाओ अपने हाथ ” । तब बड़ी वाली छोकरी बोली, ” प्पपा, हमने आपके नेक काम देख लिए हैं, अब बुरा मत मानो। जो काम आप 11 व 13 बरस की छोरी के साथ कर सकते हो वो हमारे साथ भी तो कर सकते हो; करो, करो ना, प्यारे पापा!! ” यही बात अपनी कोमल मासूम आवाज में दोनों छोटी बच्चियों ने भी मुझे कही। मैं कुछ देर सोचता रहा; फिर बोला, ” तो क्या तुम भी इस लाइन का मज़ा लेना चाहती हो? ” छोटी व मँझली छोरी प्यार से चिल्लाई : ” हाँ, पापा, बिलकुल; क्या हमें ये मज़ा लेने का हक नहीं? बोलो ना, पापा?? ” ।

कोई चारा ना देख मैं उठ खड़ा हुआ और रोशनी ऑन कर दी। तीनों ने ही मेरे लौड़े को सहलाने के लिए अपने-अपने हाथ मेरी पेंट की ज़िप से सटा दिये। मैंने तुरंत ही सबसे छोटीवाली को मादरजात नंगा किया, और बोला, ” आजा, गुड्डी, देख अपने पापा का मस्त कलंदर लौडा!! ” । अब मँझली व बड़ी ने एक दूसरे को नंगी किया, और हम चारों एकदम धुर नंगे थे। सबसे छोटीवाली ने मेरे अंडकोश चाटने शुरू किए और बाकी दो मेरे लौड़े के अगल-बगल लग गईं। रात के डेढ़ बज गए थे इस वक्त। मैंने भी मौका देख तीनों की गांड टटोली। मैं मस्ती में नंगा हो, उलट-पुलट हो रहा था और तीनों बच्चियाँ मेरे पेट पर कूद रही थीं और फिर थोड़ी देर बाद तीनों ने मिलकर मेरे नितंबों पर झपेटा गाड़ा। सबसे छोटी वाली ने मेरी गांड की दरार से निकल कर, मेरे सामने आ, मेरे लंड को कड़क से पकड़ लिया। ” आह, क्या कोमल रसीले हाथ थे उसके। आह, क्या उसकी मुट्ठी की गरमी थी। आहा, आहा। ”

मेरे से रहा नहीं गया और मैंने छोटी वाली को सिर के बल उलटा कर उसकी टांगें चौड़ी की व अपना भयंकर लौड़ा उसकी नन्ही चूत की दरार में टिका दिया, और घप्प से उसकी नन्ही फुद्दी में घुसेड़ दिया। वह दर्द से चिल्लाई, मगर मैं अपनी गांड व पेट उछाल-उछाल धर्म-धक्के मारने लगा। छोरी का दर्द असह्य था पर मेरा लौड़ा भी मजबूत था। फिर तो एक के बाद एक मैंने तीनों का कचूमर निकाल दिया।

Previous Post Next Post