फूफाजी ने मेरी कुंवारी चूत को चोदकर सील तोड़ी

फूफाजी ने मेरी कुंवारी चूत को चोदकर सील तोड़ी

फूफाजी ने मेरी कुंवारी चूत को चोदकर सील तोड़ी

फूफाजी ने मेरी कुंवारी चूत को चोदकर सील तोड़ी


मैं एक गांव की रहने वाली लड़की हूं मैं अभी 19 साल की हूँ। मेरे घर में मेरे मां-पापा, एक भाई और मेरी दो बहने हैं। पापा फलों की दुकान चलाते हैं और मम्मी घर का काम करती है। मां फ्री टाइम में पापा की दुकान पर मदद करती हैं।
ये बात आज से साल भर पहले की है। उस वक्त तक मैंने किसी के साथ सेक्स संबंध नहीं बनाए थे। मैंने अपनी एक सहेली से ये तो सुना था कि मर्द और औरत का मिलन किस तरह होता है, लड़की की जवानी की चुदाई होती है.
मगर मैंने अभी तक न तो किसी लड़के का लण्ड देखा था और न ही मुझे असल में पता था कि जब लण्ड चूत में जाता है तो कैसा अनुभव होता है। लेकिन मेरा मन बहुत करता था कि मेरा भी एक बॉयफ्रेंड हो।
मैं भी चाहती थी कि किसी के साथ बाहर घूमने जाऊं, मस्ती करूं, सेक्स करूं, अपने बॉयफ्रेंड को प्यार करूं, जवानी की चुदाई का मजा लूं.
इधर मेरी किस्मत ने कुछ और ही खेल खेल दिया मेरे साथ। एक दिन की बात है कि मेरे फूफा जी हमारे घर आ गये। हम लोग लम्बे अरसे के बाद मिल रहे थे। जब फूफाजी ने मुझे गले से लगाया तो मेरे संतरे उनकी छाती से दब गए।
उन्होंने मुझे कस कर बांहों में भर लिया और मेरी पीठ पर हाथ फेरते हुए मुझे कस कर भींच लिया। फिर मुझे छोड़ते हुए बोले- हमारी महिमा हो तो बहुत बड़ी हो गई है। कितनी जल्दी जवान हो गई है।
मेरे घर वाले उनकी इस बात पर मुस्करा दिए। मैं तो शर्मा गई थी।
फिर मैं उनके लिए पानी लाने के लिए चली गयी जब उन्होंने मुझे अपने गले लगाया था तो मेरे बदन में एक बिजली सी दौड़ गई थी। मुझे पहली बार किसी मर्द के शरीर का अहसास मिला था।
उस दिन मुझे पहली बार ये अहसास हुआ कि मर्द के शरीर से चिपक कर कितना मजा आता है।
मेरे फूफा का नाम रंजीत ठाकुर है। वो 45 साल के हैं और बहुत ही ठरकी किस्म के आदमी हैं। मगर देखने में जवान ही लगते हैं।
मैंने फूफा को पानी दिया और बातें करने लगी।
फिर मेरे घरवालों से बात करने के बाद वो मेरे कमरा में आ गये।
हम दोनों में बातें होने लगीं।
मैं बोली- फूफाजी ..... बुआ नहीं आई?
फूफा- अरे महिमा बेटी ..... क्या बताऊँ ..... वो तो आजकल बीमार ही रहती है। कोई काम भी नहीं होता उससे। मेरा तो दिल करता है कि तेरे जैसी किसी जवान लड़की से शादी कर लूं। तुम्हारी बुआ तो अब बजुर्गों में शामिल हो गई है।
मैंने मुस्कराकर कहा- फूफाजी, आप भी तो बुजुर्ग हो गए हैं।
उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोले- महिमा ..... मैं तो आज भी कुश्ती लड़ सकता हूँ।
फिर वो मेरे करीब आ गये और मेरे कान में बोले- मैं केवल उम्र से बड़ा लगता हूं, मेरे शरीर में ताकत अभी भी 25 साल के लौंडे जितनी है। अगर तुझे यकीन न हो तो कभी आजमाकर देख लेना।
मैं बोली- जाने दो फूफाजी ..... मुझे चाये बनानी है।
फूफाजी बोले- जा बना ले चाय!
फिर मैं चाय बनाने लगी तो फूफाजी मुझे ही देख रहे थे और मन ही मन में मुस्करा रहे थे।
चाये बनाते बनाते मम्मी भी आ गई।
मैं फूफाजी और मम्मी को चाय देकर रसोई में आई।
फिर फूफाजी मम्मी से बाते करने लगे और मैं शाम के खाने की तैयारी करने लगी।
मगर मैं जिधर भी जा रही थी उनकी नजर मेरा पीछा कर रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरे जवान कसमिन बदन का नाप ले रहे हों।
नजरों ही नजरों में मेरे कपड़ों के भीतर झांकने की कोशिश कर रहे हों।
फिर ऐसे ही शाम हो गई। सब लोग खाना खाने लगे।
इतने में फिर पापा भी आ गये।
फूफा बोले- मैं महिमा को लेने आया था। आपकी बहन की तबियत ठीक नहीं है कई दिनों से। हमने सोचा कि महिमा कुछ दिन रहेगी तो तब तक वो ठीक हो जाएगी।
पापा बोले- अरे रंजीत जी, इसमें पूछने की क्या बात है? आपकी भी बेटी है, आप ले जाइये इसे अपने साथ!
फिर पापा ने कहा- महिमा, कल तुझे अपने फूफा के साथ जाना है ..... तो अभी से अपना सामान पैक कर लेना।
मैंने कहा- ठीक है पापा!
अब रात को सामान पैक करते हुए मेरे मन में अजीब सी गुदगुदी हो रही थी।
मुझे पता था कि फूफा की नजर मेरे बदन पर है। वो मुझे वहां ले जाकर कुछ न कुछ तो जरूर करेंगे।
ये सोचकर मैं मन ही मन रोमांचित भी हो रही थी और थोड़ा डर भी लग रहा था।
सुबह जब मैं उठी तो फूफाजी तैयार थे।
मैं भी तैयार हो गई।
खाना खाकर मैं और फूफाजी बस स्टैंड पर गए।
उन्होंने मेरा बैग उठा लिया था, जैसे पति पत्नी जाते हैं।
रास्ते में वो बोले- महिमा, कुछ चाहिए खाने के लिए बता दे, फिर बस चलने का समय हो जाएगा।
मैंने कहा- नहीं फूफाजी, मुझे अभी तो कुछ नहीं चाहिए।
उसके बाद हम बस में चढ़ गए। बस पूरी भर गई थी।
फूफाजी बैग ऊपर रखकर मेरे पीछे खड़े हो गए।
मैंने सलवार सूट पहना हुआ था और फूफाजी ने लुंगी कुर्ता पहना था। जब बस चलने लगी तो वो मेरे साथ चिपक कर खड़े हो गए।
मैं भी जैसे अनजान बनकर खड़ी रही। कुछ ही देर में मुझे कुछ महसूस होने लगा अपनी गांड पर।
मैं समझ गई कि फूफाजी का लण्ड खड़ा हो गया है। मुझे लण्ड का अहसास बहुत उत्तेजित कर रहा था।
इससे पहले मुझे किसी मर्द के लण्ड की छुअन का अहसास नहीं मिला था।
वो बार बार आगे की ओर हल्का धक्का देते हुए लण्ड को मेरी गांड की ओर धकेल रहे थे जैसे कि मेरी गांड में अपने लण्ड को घुसाना चाहते हों।
मगर लण्ड मेरी गांड की दरार में सेट नहीं हो पा रहा था।
मैंने टांगें हल्की सी खोल लीं और पंजों के बल हल्की ऊपर उठकर उनके लण्ड अपनी गांड की दरार में जगह दे दी। अब फूफाजी का लण्ड मेरी गांड की दरार में सेट हो चुका था।
ऐसा लग रहा था कि यदि मैंने सलवार नहीं पहनी होती तो उनका लण्ड मेरी गांड में ही घुस जाना था।
उनका लण्ड काफी मोटा और लंबा था, मुझे अपनी गांड पर अलग से महसूस हो रहा था।
अचानक बस के ब्रेक लगे तो मैं आगे की ओर गिरने लगी।
फौरन फूफाजी ने मेरे बूब्स पकड़ लिए और मुझे संभालने के बहाने से उनको पकड़ कर भींच दिया।
मेरी आह्ह निकल गई।
वो बोले- थोड़ी संभल कर महिमा, अभी गिर जाती तो?
मैंने बस की छत से लगे पाइप का सहारा ले लिया।
दो मिनट बाद उन्होंने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया।
वो अब पूरी तरह मेरे शरीर से चिपके हुए थे। उनकी गर्म सांसें मुझे अपनी गर्दन पर महसूस हो रही थीं।
मैं भी इस वजह से गर्म होती जा रही थी। अबकी बार जब बस में दोबारा ब्रेक लगे तो उन्होंने बहाने से मेरी गर्दन पर चूम लिया।
वो अब लगातार अपने लण्ड को मेरी गांड पर घिस रहे थे और हिलते हुए आगे पीछे हो रहे थे।
ऐसा लग रहा था जैसे मेरी चुदाई कर रहे हों।
फिर धीरे से मेरे कान में बोले- आज का सफर तो हमेशा याद रहेगा मुझे!
ये सुनकर मैं शर्मा गई।
सफर में 50 मिनट लगे मगर ये 50 मिनट बहुत जल्दी बीत गए।
उसके बाद हम उतर कर उनके घर की ओर जाने लगे।
घर बस स्टैंड से ज्यादा दूर नहीं था।
हम लोग घर पहुंचे तो बुआ हमें देखकर खुश हो गई।
उन्होंने मुझे बैठाया और चाय-पानी के लिए पूछा।
फिर मैं बोली- बुआ, मेरा कमरा कौन सा है।
बुआ ने मेरा कमरा मुझे दिखा दिया।
मैं अपना सामान लेकर जाने लगी तो बुआ ने फूफाजी से कहा- ये इतना भारी सामान कैसे लेकर जाएगी सीढ़ियों से? इसका सामान कमरा में रखवा दीजिए।
वो मेरा सामान लेकर मेरे कमरा में साथ ही आ गये।
सामान रखकर उन्होंने पूछा- तो कैसा लगा महिमा?
मैंने कहा- कमरा तो बहुत अच्छा है।
वो बोले- मैं कमरा की बात नहीं कर रहा।
इससे पहले मैं कुछ और कहती तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रखवा दिया और बोले- ये कैसा लगा?
लण्ड पर हाथ लगते ही मैंने अपने चेहरे को दूसरे हाथ से ढक लिया।
उन्होंने मुझे दोनों हाथों सो गोदी में उठाया और बेड पर ले जाकर गिरा दिया। वो मेरे ऊपर आ गये। मैंने दोनों हाथों से चेहरा छुपा लिया था।
मगर उन्होंने मेरे हाथ हटाकर मेरे होंठों को चूमना शुरू कर दिया।
वो बोले- बता ना ..... कैसा लगा?
वो मेरे होंठों को चूमते रहे
मुझे भी अच्छा लगने लगा और मैंने उनका साथ देना शुरू कर दिया।
अब उनका लण्ड मेरी चूत में घुसने की कोशिश कर रहा था।
वो बहुत उतावले हो गए और मेरी सलवार के ऊपर से ही मेरी चूत को अपने हाथ से रगड़ने लग
इतने में ही नीचे से बुआ की आवाज आई तो फूफा एकदम से उठ गए।
फिर बुआ को गाली देते हुए मरे मन से नीचे चले गए।
मैं बहुत खुश हुई।
फूफा मेरे लिए पागल थे और मुझे आज बहुत मजा आया।
ये मेरा पहला अहसास था।
मगर मुझे नहीं पता था कि मेरी चूत आज ही चुदने वाली है।
दोपहर का खाना होने के बाद मैं अपने कमरा में आ गयी थी।
मौका पाकर फूफाजी भी आ पहुंचे।
आते ही उन्होंने कमरा को अंदर से बंद कर लिया और मुझे बांहों में लेकर चूमने लगे।
मैंने कहा- बुआ देख लेगी।
वो बोले- वो पड़ोसन के यहां गई है। एक घंटे से पहले नहीं आने वाली।
इतना बोलकर उन्होंने मुझे बेड पर पटक लिया और मेरे होंठों को चूमने लगे।
मैं भी उनका साथ देने लगी।
एकदम से उन्होंने मेरी सलवार में हाथ डाल दिया।
नहाने के बाद मैंने पैंटी नहीं पहनी थी इसलिए हाथ सीधा मेरी नंगी चूत पर जा लगा।
वो मेरी चूत को रगड़ने लगे।
मैं चुदासी होने लगी।
पहली बार किसी मर्द का हाथ मेरी चूत को रगड़ रहा था।
देखते ही देखते फूफाजी ने मुझे नंगी कर दिया और खुद भी नंगे हो गये।
मुझे उनके सामने नंगी होकर शर्म आ रही थी। मैंने अपने चेहरे को ढक लिया और टांगों को भींचकर चूत को छिपाने लगी।
वो मेरी जांघों को खोलकर मेरी कमसिन चूत को देखने लगे, फिर उसको जीभ से चाटने लगे।
मैं तो एकदम से सिहर गई ..... ऐसा अहसास कभी नहीं मिला था।
फूफाजी अब मेरी चूत को चाटने लगे।
मैं भी मजा लेने लगी, बहुत उत्तेजना हो रही थी।
फिर काफी देर चाटने के बाद मुझसे रहा नहीं गया, मैं बोली- बस करो फूफा जी ..... अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा। बहुत तड़प गई हूं। अब कैसे शांत होगी ये प्यास?
वो बोले- अभी कर देता हूं मेरी रानी ..... बस तू घबराना मत! दर्द होगा तुझे लेकिन मेरा साथ देना।
मैंने हां में गर्दन हिला दी और फूफा ने मेरी चूत पर लण्ड टिका दिया।
फिर धीरे धीरे उसको चूत पर रगड़ने लगे।
मैं और ज्यादा तड़पने लगी।
फिर उन्होंने एक धक्का मारा तो जैसे मेरी जान निकल गयी।
उनका लण्ड मेरी चूत में घुस गया।
मुझे ऐसा दर्द हुआ जैसे टांगों के बीच में से किसी ने चीर दिया हो।
मैं छटपटाने लगी तो उन्होंने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया कि कहीं मेरी चीख न निकल जाए।
उन्होंने एक और धक्का मारा तो मेरी फिर से रूह कांप गई। इतना दर्द हो गया कि मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। मेरी आँखों में आंसू आ गये। वो मेरे ऊपर लेटे रहे और मुझे चूमते रहे।
कुछ देर तक वो बस लेटे रहे।
फिर जब मेरा दर्द हल्का हुआ तो उन्होंने धीरे धीरे लण्ड को चूत में चलाना शुरू किया।
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कोई चाकू से मेरी चूत को चीरने के बाद उसके जख्म को कुरेद रहा है।
मगर बाद में फिर जब लण्ड की रगड़ चूत की दीवारों पर लगने का मीठा अहसास हुआ तो मेरा दर्द गायब होता चला गया।
अब मैं चुदने में फूफाजी का साथ देने लगी।
वो तेजी से अब मेरी चूत मारने लगे और मैं उनके नशे में खो सी गई।
दस मिनट की चुदाई के बाद एकदम से उन्होंने मेरी चूत से लण्ड निकाला और मेरे पेट पर अपना गाढ़ा सफेद माल गिरा दिया।
मैंने अपनी चूत को देखा तो वो फट गयी थी, सूजकर लाल हो गयी थी, खून के धब्बे लग गए थे उस पर।
फिर उन्होंने मेरी चूत को साफ किया और फिर नीचे से दर्द की गोली लाकर दी।
कुछ देर के बाद मुझे आराम मिला और फिर मैं सो गई।
वो भी नीचे चले गये।
उस दिन पहली बार मेरे फूफा ने मेरी चूत चोदकर मेरी सील तोड़ी। इस तरह से मेरी चुदाई की शुरूआत हुई। जब तक मैं बुआ के यहां रही तो उन्होंने मुझे खूब चोदा। मुझे भी अब लण्ड का चस्का लग गया था इसलिए मजे मजे में चुदती रही।

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